पद्मावती
स्तोत्र संकटमोचक
देवी मां
पद्मावती, ज्योति रूप महान।
विघ्न हरो
मंगल करो, करो मात कल्याण। (1)
चौपाई।।जय-जय-जय
पद्मावती माता, तेरी महिमा त्रिभुवन गाता।
मन की आशा
पूर्ण करो मां, संकट सारे दूर करो मां।। (2)
तेरी महिमा
परम निराली, भक्तों के दुख हरने वाली।
धन-वैभव-यश
देने वाली, शान तुम्हारी अजब निराली।। (3)
बिगड़ी बात
बनेगी तुम से, नैया पार लगेगी तुम से।
मेरी तो बस
एक अरज है, हाथ थाम लो यही गरज है।। (4)
चतुर्भुजी
मां हंसवाहिनी, महर करो मां मुक्तिदायिनी।
किस विध
पूजूं चरण तुम्हारे, निर्मल हैं बस भाव हमारे।। (5)
मैं आया हूं
शरण तुम्हारी, तू है मां जग तारणहारी।
तुम बिन कौन
हरे दुख मेरा, रोग-शोक-संकट ने घेरा।। (6)
तुम हो
कल्पतरु कलियुग की, तुमसे है आशा सतयुग की।
मंदिर-मंदिर
मूरत तेरी, हर मूरत में सूरत तेरी।। (7)
रूप
तुम्हारे हुए हैं अनगिन, महिमा बढ़ती जाती निशदिन।
तुमने सारे
जग को तारा, सबका तूने भाग्य संवारा।। (8)
हृदय-कमल
में वास करो मां, सिर पर मेरे हाथ धरो मां।
मन की पीड़ा
हरो भवानी, मूरत तेरी लगे सुहानी।। (9)
पद्मावती
मां पद्म-समाना, पूज रहे सब राजा-राणा।
पद्म-हृदय
पद्मासन सोहे, पद्म-रूप पद-पंकज मोहे।। (10)
महामंत्र का
मिला जो शरणा, नाग-योनी से पार उतरना।
पारसनाथ हुए
उपकारी, जय-जयकार करे नर-नारी।। (11)
पारस प्रभु
जग के रखवाले, पद्मावती प्रभु पार्श्व उबारे।
जिसने प्रभु
का संकट टाला, उसका रूप अनूप निराला।। (12)
कमठ-शत्रु
क्या करे बिगाड़े, पद्मावती जहं काज सुधारे।
मेघमाली की
हर चट्टानें, मां के आगे सब चित खाने।। (13)
मां ने
प्रभु का कष्ट निवारा, जन्म-जन्म का कर्ज उतारा।
पद्मावती
दया की देवी, प्रभु-भक्तों की अविरल सेवी।। (14)
प्रभु
भक्तों की मंशा पूरे, चिंतामणि सम चिंता चूरे।
पारस प्रभु
का जयकारा हो, पद्मावती का झंकारा हो।। (15)
माथे मुकुट
भाल सूरज ज्यों, बिंदिया चमक रही चंदा।
अधरों पर
मुस्कान शोभती, मां की मूरत नित्य मोहती।। (16)
सुरनर
मुनिजन मां को ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे।
मां का जो
जयकारा बोले, उनके घर सुख-संपत्ति बोले।। (17)
ॐ ह्रीं
श्री क्लीं मंत्र से ध्याऊं,
धूप-दीप-नैवेद्य चढ़ाऊं।
रिद्धि-सिद्धि
सुख-संपत्ति दाता, सोया भाग्य जगा दो माता।। (18)
मां को पहले
भोग लगाऊं, पीछे ही खुद भोजन पाऊं।
मां के यश
में अपना यश हो, अंतरमन में भक्ति-रस हो।। (19)
सुबह उठो
मां की जय बोलो, सांझ ढले मां की जय बोलो।
जय-जय मां
जय-जय नित तेरी, मदद करो मां अविरल मेरी।। (20)
शुक्रवार
मां का दिन प्यारा, जिसने पांच बरस व्रत धारा।
उसका काज
सदा ही संवरे, मां उसकी हर मंशा पूरे।। (21)
एकासन-व्रत-नियम
पालकर, धूप-दीप-चंदन पूजन कर।
लाल-वेश हो
चूड़ी-कंगना, फल-श्रीफल-नैवेद्य भेंटना।। (22)
मन की आशा
पूर्ण हुए जब, छत्र चढ़ाएं चांदी का तब।
अंतर में हो
शुक्रगुजारी, मां का व्रत है मंगलकारी।। (23)
मैं हूं मां
बालक अज्ञानी, पर तेरी महिमा पहचानी।
सांचे मन से
जो भी ध्यावे, सब सुख भोग परम पद पावे।। (24)
जीवन में
मां का संबल हो, हर संकट में नैतिक बल हो।
पाप न होवे
पुण्य संजोएं, ध्यान धरें अंतरमन धोएं।। (25)
दीन-दुखी की
मदद हो मुझसे, मात-पिता की अदब हो मुझसे।
अंतर-दृष्टि
में विवेक हो, घर-संपति सब नेक-एक हो।। (26)
कृपादृष्टि
हो माता मुझ पर, मां पद्मावती जरा रहम कर।
भूलें मेरी
माफ करो मां, संकट सारे दूर करो मां।। (27)
पद्म नेत्र
पद्मावती जय हो, पद्म-स्वरूपी पद्म हृदय हो।
पद्म-चरण
ही एक शरण है, पद्मावती मां विघ्न-हरण है।। (28)
।।दोहा।।पद्म
रूप पद्मावती, पारस प्रभु हैं शीष।
'सेवक' तुम्हारी
शरण में, दो मंगल आशीष।। (29)
पार्श्व
प्रभु जयवंत हैं, जिन शासन जयवंत।
पद्मावती
जयवंत हैं, जयकारी भगवंत।। (30)
चरण-कमल में
सेवक का, नमन करो स्वीकार।
भक्तों की
अरजी सुनो, वरते मंगलाचार।। (31)
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